डूबते को उसने दिया सहारा एक तिनके की तरह
फिर से याद किनारा दिला दिया मसीहे की तरह
जैसे तिनके ने सिर्फ एक ऊँगली थमाई थी
उसने भी तो बस एक ही बात समझाई थी
कितना तुम बोल देते हो कि शब्द बहरे हो जाते हैं
अपने ही नहीं होते पराये किनारे भी दूर हो जाते हैं
चुप हो जाओ अब तुम मैँ तो हूँ आ ही गया
किनारा अभी भी बहुत ज्यादा दूर है नहीं गया
साँसों को समेटते समय की उस बाढ़ में मैने कहा था
किनारा मिल भी गया तो क्या मेरा अब सब है बह गया
कुछ नहीं बहा है तुम्हारा सिर्फ तुम बह जाते हो
चलो किनारे देखें तुम क्या नया कर दिखाते हो
स्तब्ध रह गया में उसकी तिनके जैसी सादगी पे
कह दिया उसने तिनका ही हूँ में आशियाना मत बनाना
डूब रहे हो तुम इस लिए ही सिर्फ मेरा काम है बचाना
कल्पनाओं में अगर डूबोओगे तो तुम्हीं मुझे किनारे ले जाना
डूबना भूल गया मैं क्यूंकि शब्दों के उसने डुबो ही दिया था
कहाँ से आ गए फिर सारे जिनका मैंने आसरा छोड़ दिया था
मुझे तो ले चले अब सारे फिर से किनारे की ओर
मेरे उस तिनके को उन्होंने वहीँ बहने दिया छोड़
चीखने को किया मन, तुम सब पराये हो सच में
क्यों मेरे एक ही अपने को मंझदार में छोड़ आये हो
याद आ गया ऊँगली के उस स्पर्श से चुप करवाया था
और उस पल ही समझाया था बह जाऊँगा तिनका हूँ
हवा के झोंके पे आया था समय की धार पे चला जाऊँगा
अगर फिर न रुलाना चाहो कभी तो रहना अब शांत फिर आऊंगा
मिलेंगे हम बार बार चाहे नौका में हो न हो पतवार
ना मुझे हवा के झोंके की ज़रुरत होगी न लगेगी तुम्हें बौछार
जब जब करोगे मुझे याद अपनी दवात से स्याही ले लेना
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